अनुपयोगी योजनाओं पर खर्च कर दिए गए बीआरजीएफ के लाखों रुपए
बांका LIVE डेस्क : पिछड़े ग्रामीण क्षेत्र में आधारभूत संरचना विकसित करने के उद्देश्य से पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष योजना के तहत भारत सरकार द्वारा राशि उपलब्ध कराई जाती थी……लेकिन देवघर में विभागीय लापरवाही के कारण कई ऐसी योजनाओं पर लाखों की राशि खर्च कर दी गई है जिनकी निर्माण के वर्षों बाद भी स्थानीय ग्रामीण के लिए कोई उपयोगिता नहीं है.
देवघर के देवीपुर प्रखंड अंतर्गत BRGF के तहत निर्मित यह है ग्रामीण हाट. इसके निर्माण पर 25 लाख की बड़ी राशि खर्च कर दी गई, लेकिन निर्माण के तीन वर्षों बाद भी आजतक इस जगह पर एक बार भी हाट नहीं लगाया गया. खुद स्थानीय ग्रामीण भी मानते हैं कि गलत जगह पर इसका निर्माण करा कर सरकारी राशि की सिर्फ बर्बादी की गई है. ग्रामीणों द्वारा अब इसकी जांच की मांग की जा रही है.
विभागीय अधिकारी भी मानते हैं कि निर्माण के बाद से इसका उपयोग नहीं हो रहा है, लेकिन इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि को ही दोषी ठहरा कर अधिकारी अपना पल्ला झाड़ रहे है. हालांकि जिला परिषद् की बैठक में इस मुद्दे को उठाने का आश्वासन उनके द्वारा अवश्य दिया जा रहा है. मदन मुरारी प्रसाद, कार्यपालक अभियंता, एनआरईपी, देवघर इस मामले में तरह तरह के तर्क देते हैं. अधिकारी अपनी बचाव में चाहे जो तर्क दें, लेकिन इतना तो सबको पता है कि योजना की तकनीकी स्वीकृति विभाग द्वारा ही दी जाती है. ऐसे में विभागीय लापरवाही से सरकारी राशि के दुरुपयोग पर सवाल उठना लाज़मी है.
देवघर के देवीपुर प्रखंड अंतर्गत BRGF के तहत निर्मित यह है ग्रामीण हाट. इसके निर्माण पर 25 लाख की बड़ी राशि खर्च कर दी गई, लेकिन निर्माण के तीन वर्षों बाद भी आजतक इस जगह पर एक बार भी हाट नहीं लगाया गया. खुद स्थानीय ग्रामीण भी मानते हैं कि गलत जगह पर इसका निर्माण करा कर सरकारी राशि की सिर्फ बर्बादी की गई है. ग्रामीणों द्वारा अब इसकी जांच की मांग की जा रही है.
विभागीय अधिकारी भी मानते हैं कि निर्माण के बाद से इसका उपयोग नहीं हो रहा है, लेकिन इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि को ही दोषी ठहरा कर अधिकारी अपना पल्ला झाड़ रहे है. हालांकि जिला परिषद् की बैठक में इस मुद्दे को उठाने का आश्वासन उनके द्वारा अवश्य दिया जा रहा है. मदन मुरारी प्रसाद, कार्यपालक अभियंता, एनआरईपी, देवघर इस मामले में तरह तरह के तर्क देते हैं. अधिकारी अपनी बचाव में चाहे जो तर्क दें, लेकिन इतना तो सबको पता है कि योजना की तकनीकी स्वीकृति विभाग द्वारा ही दी जाती है. ऐसे में विभागीय लापरवाही से सरकारी राशि के दुरुपयोग पर सवाल उठना लाज़मी है.
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